कभी मैं उदास भी ,
तो कभी में महफ़िल भी ,
कभी में गुप अधेरा ,
तो कभी मैं तेज सवेरा भी ,
कभी मैं मुलाकात ,
तो कभी मैं तन्हाई भी ,
कभी मैं तेरा दीदार,
तो कभी मैं प्यार भी ,
कभी मैं ये ,
तो कभी मैं वो ,
पर जो हरदम हु मैं ,
तो उसे कैसे बयान करू ,
किस कदर कोई मुझ में ,
हरदम ,
कभी मैं इसको कैसे लिख सकू ,
है ऐसी स्याही ,
जिसको कभी मैं ,
पन्नो पर न उकेर सकू ,
हु मैं हरदम वो जिसको ,
कभी बयान ना कर सकू ,
तो कभी में महफ़िल भी ,
कभी में गुप अधेरा ,
तो कभी मैं तेज सवेरा भी ,
कभी मैं मुलाकात ,
तो कभी मैं तन्हाई भी ,
कभी मैं तेरा दीदार,
तो कभी मैं प्यार भी ,
कभी मैं ये ,
तो कभी मैं वो ,
पर जो हरदम हु मैं ,
तो उसे कैसे बयान करू ,
किस कदर कोई मुझ में ,
हरदम ,
कभी मैं इसको कैसे लिख सकू ,
है ऐसी स्याही ,
जिसको कभी मैं ,
पन्नो पर न उकेर सकू ,
हु मैं हरदम वो जिसको ,
कभी बयान ना कर सकू ,
बेचैनी, छटपटाहट, संवेदना.. सब कुछ है इन लाइनों में.
ReplyDeleteप्यार भी ,
ReplyDeleteकभी मैं ये ,
तो कभी मैं वो ,
पर जो हरदम हु मैं ,
तो उसे कैसे बयान करू
shayad koi bhi byan nahi kar sakta .bahut sundar Reena .likhti rahiye .
BHARTIY NARI
ReplyDeleteजिसको कभी मैं ,
ReplyDeleteपन्नो पर न उकेर सकू ,
हु मैं हरदम वो जिसको ,
कभी बयान ना कर सकू ,
...sach khud ko bayan karna saral nahi..
sundar abhivykati..
वाह लाज़वाब अभिव्यक्ति..आभार
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