name

Saturday, February 12, 2011

कभी

कभी मैं उदास  भी ,
तो कभी में महफ़िल भी ,
कभी में गुप  अधेरा ,
तो कभी मैं तेज सवेरा भी ,
कभी मैं  मुलाकात  ,
तो कभी मैं  तन्हाई  भी ,
कभी मैं  तेरा दीदार,
तो कभी मैं प्यार भी ,
कभी मैं ये ,
तो कभी मैं वो ,
पर जो हरदम हु मैं ,
तो उसे कैसे बयान करू ,
किस कदर कोई मुझ में ,
हरदम ,
कभी मैं  इसको कैसे लिख सकू ,
है ऐसी स्याही ,
जिसको कभी मैं ,
पन्नो पर न उकेर सकू ,
हु मैं हरदम वो जिसको  ,
कभी बयान ना कर  सकू ,

 
 

5 comments:

  1. बेचैनी, छटपटाहट, संवेदना.. सब कुछ है इन लाइनों में.

    ReplyDelete
  2. प्यार भी ,
    कभी मैं ये ,
    तो कभी मैं वो ,
    पर जो हरदम हु मैं ,
    तो उसे कैसे बयान करू
    shayad koi bhi byan nahi kar sakta .bahut sundar Reena .likhti rahiye .

    ReplyDelete
  3. जिसको कभी मैं ,
    पन्नो पर न उकेर सकू ,
    हु मैं हरदम वो जिसको ,
    कभी बयान ना कर सकू ,
    ...sach khud ko bayan karna saral nahi..
    sundar abhivykati..

    ReplyDelete
  4. वाह लाज़वाब अभिव्यक्ति..आभार

    ReplyDelete